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ग़ज़ल
एक ग़ज़ल ~
कुछ उसकी तस्वीरें हैं,औ उन पर कुछ अशआर मेरे।
इतने से सामान में बस कट जाते हैं दिन यार मेरे।
चार दिनों की ज़ीस्त में हमने तीन में दुनियादारी की,
बचा हुआ बस इक दिन है वो जीने दो अनुसार मेरे।
जो तुझको अच्छे लगते हैं वही कीमती शेर हैं बस,
बाकी जो भी लिखे है बस यूँ ही हैं अशआर मेरे।
काम मेरे वो आएं न आएं, नीयत उनकी बुरी नहीं,
उनसे क्या शिक़वा करना अब जैसे भी हैं यार मेरे।
जो भी करें सब जायज़ है वो, उनका कहा सर माथे पर,
मालिक हैं वो मेरे दिल के, हैं जैसे सरकार मेरे।
© इन्दु
कुछ उसकी तस्वीरें हैं,औ उन पर कुछ अशआर मेरे।
इतने से सामान में बस कट जाते हैं दिन यार मेरे।
चार दिनों की ज़ीस्त में हमने तीन में दुनियादारी की,
बचा हुआ बस इक दिन है वो जीने दो अनुसार मेरे।
जो तुझको अच्छे लगते हैं वही कीमती शेर हैं बस,
बाकी जो भी लिखे है बस यूँ ही हैं अशआर मेरे।
काम मेरे वो आएं न आएं, नीयत उनकी बुरी नहीं,
उनसे क्या शिक़वा करना अब जैसे भी हैं यार मेरे।
जो भी करें सब जायज़ है वो, उनका कहा सर माथे पर,
मालिक हैं वो मेरे दिल के, हैं जैसे सरकार मेरे।
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