...

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शाम ढले,,,,
शाम ढले मन का बैचेन होना ,नया नहीं है मेरे लिए ।अक्सर
ऐसा ही तो होता है मेरे साथ , जब से तुम गए हो,,,,
जाने क्या है जो मुझे उदास कर जाता है, तुम्हारी यादें या
तुम्हारा खुद मेरे साथ ना होना इस पल में,,,पर ये क्या,,,
इस पल में क्यों ,,,तुम तो कभी थे ही नहीं मेरे साथ मेरे पास ,,
मेरे किसी भी पल में,,,
ये मेरा प्यार है या पागलपन ,,,नही पता ,
कि मैं जानती थी शुरू से की तुम ना मेरे कभी हुए थे और न ही कभी होगे फिर भी न जाने क्यूं
तुम्हरा न होना मुझे अंदर से खाली किए जाता है,,,
ना जाने कितनी यादें गड़ी हैं मुझे में , जो दिन ढलते ही डरावने सायों की तरह मेरे इर्द गिर्द घूमने लगती हैं,,,
और लपेट लेती हैं मेरी रूह को अपने काले पैबंद लगे कफ्तानो में,,, मै बस घुट कर रह जाती हूं,,,
जो कभी आयेगी ही नहीं ,,,,,
उस सुबह का इंतजार मैं सारी रात करती हूं,
शायद मैं आज भी तुमसे , बहुत प्यार करती हूं,
© char0302