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#परतिक्षा
#प्रतिक्षा
स्थिर तन चंचल मन,
अडिग प्रतिक्षा की लगन;
शम्भू जैसे पाने को गौरा संग,
चल पड़े हाथ लिए डमरू मृदंग,
सजा लिया भोले ने तन को अनोखे से भस्म रंग,
हुए बावरे देख सारे, गौरा रह गई दंग,
विवाह हुआ शंकर गौरा का मन उड़े बावरा बन के पतंग।
स्थिर तन चंचल मन,
अडिग प्रतिक्षा की लगन;
शम्भू जैसे पाने को गौरा संग,
चल पड़े हाथ लिए डमरू मृदंग,
सजा लिया भोले ने तन को अनोखे से भस्म रंग,
हुए बावरे देख सारे, गौरा रह गई दंग,
विवाह हुआ शंकर गौरा का मन उड़े बावरा बन के पतंग।
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