...

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चाह रख आजमाना
दुनिया दिखने लगे जब किसी गेंद सी
और वह शुन्य दिखता हो गहरा अनंत सा
कालिख भरी नजरों में वह तेज प्रस्फुटित नहीं
भेद सके जो इस भयंकर तिमिर जाल को

दृष्टियां सबकी अपनी और है लक्ष्य साधना
दुनिया बहती संकीर्ण सी,बुलंदी की यह धरा नहीं
पाप पुण्य के बिछे मक्कड़ जाल में उलझे हैं सभी स्वरूप ज्ञान जाती डगर, परख चलो हो जो सही

अनंत के भेद हैं ये यूं तो थाह न पाओगे
जब ही चल देखोगे चक्कर खाओगे
उलझ भटकते जो खुद भी राह क्या बताएंगे
बन न जाना लकीरों के फकीर, तुम भी
ज्ञान,सत्य धरातल की चाह रख आजमाना कभी....।






© सुशील पवार