...

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तुम्ही बता मन मित किधर जाऊं
तुम्ही बता मन मित
किधर जाऊं
नदी निर बहूं
या ठहर जाऊं
तुम्ही बता मन,,,,,,

इतने बड़े भूलोक पर
एक दुनिया बसाऊं
या फिर पंख फैलाए
गगन को छूने जाऊं
तुम्ही बता मन,,,,,,

करूं क्या बता तू
जरा संभल जाऊं
ठोकरे बहुत खाए
अब रास्ते पर निकल आऊं
तुम्ही बता मन,,,,,,

मन उड़ता फिरे
किस भंवर में जाऊं
यह रास्ता शहर को गया
तो शहर को जाऊं
तुम्ही बता मन,,,,,,

कैद कर रखी हो तुम
कैसे सफर में जाऊं
सुरज बन निकलो तुम
तो घर से बाहर निकलूं
तुम्ही बता मन,,,,,,

संदीप कुमार अररिया बिहार
© Sandeep Kumar