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Heartland 🧡
आखिर मुझे इश्क़ हुआ, तो किससे?
बनारस की गलियों में बस्ती रोज़ मर्हे की कहानियों से,
चटपटे चाट, पानीपूरी या चांदी की बालियों से,
गंगा के बहाव को चूमती नैया से,
बनारसी साड़ी के ऐश्वर्य या खिलते दुपट्टे के लहराव से,
दशाश्वमेध घाट से उठती शंखनाद के गूंज से,
सारनाथ के इतिहास में अमर बौद्ध संन्यासियों के ज्ञान से,
लखनऊ की नवाबी कारीगरी से,
या गाइड साहब के चुटकुले लगा कर भूल-भुलैया भेदने के अंदाज़ से,
ज़ायके के स्वाद को लुभाती टिक्के और कबाब से,
या वो दादाजी से, जिन्होनें अपनी सूफियाना सुर बीच में ही रोक दिये,
ताकि धूप से दबी हमारी हंसी वापस आ जाए-
जी मुस्कुराइए! आप लखनऊ में हैं!
आख़िर ये सफर यादगार हुआ,
जब राम लला और काशी विश्वनाथ के दर्शन प्राप्त हुए,
और महानदी के किनारे से गुज़रती, घरवापसी में,
जब मैं कविता लिखने बैठी हूँ,
तब सरयू और गंगा तीर समान, मन में छाया सुकून
यही इशारा करता है कि,
मुझे इश्क हुआ, तो इस एहसास से!
🌼🌼🌼
© Pratiksha Saikrishna
बनारस की गलियों में बस्ती रोज़ मर्हे की कहानियों से,
चटपटे चाट, पानीपूरी या चांदी की बालियों से,
गंगा के बहाव को चूमती नैया से,
बनारसी साड़ी के ऐश्वर्य या खिलते दुपट्टे के लहराव से,
दशाश्वमेध घाट से उठती शंखनाद के गूंज से,
सारनाथ के इतिहास में अमर बौद्ध संन्यासियों के ज्ञान से,
लखनऊ की नवाबी कारीगरी से,
या गाइड साहब के चुटकुले लगा कर भूल-भुलैया भेदने के अंदाज़ से,
ज़ायके के स्वाद को लुभाती टिक्के और कबाब से,
या वो दादाजी से, जिन्होनें अपनी सूफियाना सुर बीच में ही रोक दिये,
ताकि धूप से दबी हमारी हंसी वापस आ जाए-
जी मुस्कुराइए! आप लखनऊ में हैं!
आख़िर ये सफर यादगार हुआ,
जब राम लला और काशी विश्वनाथ के दर्शन प्राप्त हुए,
और महानदी के किनारे से गुज़रती, घरवापसी में,
जब मैं कविता लिखने बैठी हूँ,
तब सरयू और गंगा तीर समान, मन में छाया सुकून
यही इशारा करता है कि,
मुझे इश्क हुआ, तो इस एहसास से!
🌼🌼🌼
© Pratiksha Saikrishna
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