...

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बहन राणी
कितनी खुशियां है चारो ओर,
कितनी खुशियां है हमारे भीतर।
पर उन्हें हम देख क्यूँ न पाते,
उसे अपनाने से क्यूँ हम कतराते।
संबंधों को प्रदर्शन न कर पाते,
अपनी खुशियां न बांट पाते।
दो कदम मैं चलूँ दो तुम चलो,
खुशियों को हम सामने ही पाते।
खुश हूं तुम्हे पाकर "राणी" बहन,
आओ मिलकर एक नई इमारत बनाते।
संजीव बल्लाल ७/४/२०२४© BALLAL S