...

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वही यार पुराना चाहा,,,,
जब अपनों के बेगाने लहजों ने मुझको रुलाना चाहा,,
आंखें झुका ली मैंने और आंसुओं को छुपाना चाहा,,

टूटे ख्वाब और टूटे दिल ने माजी से सदा लगाई,,
दुबारा जब आंखों ने नया ख्वाब सजाना चाहा,,

अक्ल ने कई बेहतर लोगों का साथ पेश किया,,
मगर दिल ने वही साथ और वही यार पुराना चाहा,,,

मेरे कहकहे गूंजने लगे और अल्फाज खामोश थे,,
जब दुनिया ने हंसी के पीछे का दर्द दिखाना चाहा,,

अक्ल को इस कदर नापसंद है मेरा तुमसे मिलना,,
के जब ख्वाब में भी मिली तो नींद से जगाना चाहा,,

मैंने सोचा था के शायद तुम ख्वाबों में मेरे होगे,,
मगर अफसोस के तुमने वहां भी जान को छुड़ाना चाहा,,
© Tahrim