...

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कड़वा सच
जिंदगी को अच्छे से जीने के लिए....
हम जिंदगी को जीना ही भूल जाते हैं
अपनी जिंदगी का कुछ पता नही
दूसरो की जिंदगी पर अपना हक़ जताते है,,,,!!

जिन अपनो के नाम की माला को....
हम हर समय जपते फिरते हैं
एक दिन ऐसा होता है वही अपने
हमे जी-भर कर छलते हैं,,,,,!!

जीवन के इस सफ़र मे हम सब....
इंसान के रूप में आते है
फिर क्यों इंसानियत को ही भूल
जाति धर्म के चक्कर में पड़ जाते है,,,,!!

अच्छे-बुरे, चाहें जैसे भी हो कर्म....
अंत मे यही साथ जाते हैं
उसके बाद भी बुरे कर्मो को छोड़कर
अच्छे कर्मो को अपना ना पाते हैं,,,,!!

बड़ी खुशियों को तलाशते-तलाशते....
छोटी खुशियों को दरवाजे से ही लौटाते हैं
फिर एक दिन समय के रंग बदलते ही
छोटी सी खुशी के लिए भी हम तरस जाते हैं,,,,!!

चार लोगों की परवाह करके खुदको....
बंदिशो की जंजीर पहनाते हैं
आखिर में वही चार लोग कंधा देकर
अपने अपने घर को लौट जाते हैं,,,!!

मन में ना जाने कितने ही भ्रम लिए....
यह जीवन हम बिताते हैं
कड़वा होता हैं सच शायद इसीलिए
उसको कभी स्वीकार ना पाते हैं,,,!!