...

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काला धागा
ये काला धागा क्यों पहन रखा है,
नज़र लगने से घबराती हो क्या ।
बहुत अलग हो तुम ;
कभी सारा शोर तुमसे,कभी गुमसुम हो तुम।
पलभर में खुली क़िताब खुद ही पन्ने पलटती हो,
अगले ही पल चक्रव्यूह सा उलझन बन जाती हो।
जितना भी पढ़ो तुम्हें लगता है समुंद्र बाकी है,
फिर निश्छल आंखों से छलका,
एक आंसु ही तुम्हें पढ़ने को काफ़ी है।
जितना चाहती हो दुनिया को दिखाना,
सिर्फ उतना ही दर्शाती हो ना तुम ;
सच बताओ! कुछ तो ख़ास है,
जिसे मन ही मन छिपाती हो ना तुम।।

मीरा सी मगन,मोहन गीत गुनगुनाती हो,
राधा सी हर बात पे मुस्कुराती हो ;
ये मुरली की धुन इतनी क्यों पसंद है तुम्हे ,
और ये नटखट अदाएं कहां से सीखी तुमने?
कुछ बोलो भी इतनी शांत क्यों हो,
और ये काला धागा क्यों पहन रखा है?
कृष्ण रंग की दिवानी हो ना तुम!!

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