...

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इंतज़ार!
कुछ गायब है यूँ अंदर से
कुछ सूना सा है....
ये वक़्त का मंजर कुछ फीका सा है
हर घड़ी बदल रही है वक़्त की परिभाषा..

फँस गए हैं कहीं
अपने ही बनाए इन रेत के महलों में...
सपने सपने नहीं
वक़्त के...