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एक भीड़ में खड़ा हूं, लेकिन भीड़ से जुदा हूं।
ना मन में चाह सबकी, हर पल को मैं जिया हूं
सब जानने के खातिर, हर हवा को मैं पिया हूं।
एक भीड़ में खड़ा हूं, लेकिन भीड़ से जुदा हूं।
ना लोभ में भरोसा, जो है उसे जिया हूं
बस दान और दुआ ही, वही जो मैं दिया हूँ,
एक भीड़ में खड़ा हूं, लेकिन भीड़ से जुदा हूं।
हर क्षण को मैने पूजा, क्योंकि मोल जानता हूं
सब माया की है साजिश, हर शौक से खफा हूँ,
एक भीड़ में खड़ा हूं, लेकिन भीड़ से जुदा हूं।
© harshu writes
सब जानने के खातिर, हर हवा को मैं पिया हूं।
एक भीड़ में खड़ा हूं, लेकिन भीड़ से जुदा हूं।
ना लोभ में भरोसा, जो है उसे जिया हूं
बस दान और दुआ ही, वही जो मैं दिया हूँ,
एक भीड़ में खड़ा हूं, लेकिन भीड़ से जुदा हूं।
हर क्षण को मैने पूजा, क्योंकि मोल जानता हूं
सब माया की है साजिश, हर शौक से खफा हूँ,
एक भीड़ में खड़ा हूं, लेकिन भीड़ से जुदा हूं।
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