...

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ग़ज़ल
आज की पेशकश ~

पालिये ऐसे ख़्वाब क्यों आख़िर।
मांगिये माहताब क्यों आख़िर।

ज़िन्दगी मौज में गुज़ारी जाए,
बेवज़ह पेच ओ ताब क्यों आख़िर।

इक मुहब्बत का नशा कम तो नहीं,
इतनी महंगी शराब क्यों आख़िर।

क्यों नफ़ा और ख़सारा देखे,
दोस्ती में हिसाब क्यों आख़िर।

जिये जाना सजा से कम तो नहीं,
ये हुज़ूम ए अज़ाब क्यों आख़िर।

पी रहे हैं सभी नशे के लिये,
फ़िर ये अदब ओ आदाब क्यों आख़िर।

इतने चुपचाप क्यों बैठे हैं आज,
कुछ तो कहिये जनाब क्यों आख़िर।
© इन्दु