...

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रे काले मेंघा
रे काले मेंघा,,,,
बंजर पड़ी जमीं पर, तू तरस दिखा "
आजा के...उसकी प्यास बुझा,,,,!!!

रे काले मेंघा,,,,
अपने कर्तव्य को, तू बखूबी निभा "
सूखे पड़े नदियों और झीलों को...तू गीला कर जा,,,,!!!

रे काले मेंघा,,,,
कभी तो, तू खुलकर अपनी गरज सुना "
सन्नाटा पड़ा है कानों में...कभी तो बिजली कड़का,,,,!!!

रे काले मेंघा,,,,
क्यों,,,तू सबको इतना इंतज़ार कराए "
आजा के...तेरे बिन बिल्कुल भी रहा ना जाए,,,,!!!

रे काले मेंघा,,,,
देख कब से, सूना पड़ा है यह आसमाँ "
पूछता है वो भी...रे मेघों तू है कहाँ गया,,,,!!!

रे काले मेंघा,,,,
चल जल्दी से रिमझिम-रिमझिम पानी बरसा "
यही कहीं जंगल में...मोर तुझे है ताक रहा,,,,!!!

रे काले मेंघा,,,,
क्यों खुदको, तू कमजोर दिखाए "
जो एक हवा का झोंका भी...कभी सह ना पाए,,,,!!!

रे काले मेंघा,,,,
जरा बता सावन में भी, तू क्यों है तड़पाए "
आजा के मिलकर...सावन के सुहाने गीत गाए,,,,!!!

रे काले मेंघा,,,,
तू तो है, बहुत ही ज्यादा इतराए "
ना जाने कैसे... किसानों को तू इतना रुलाए,,,,!!!

रे काले मेंघा,,,,,
लुका-छिपी का यह खेल, किसे है तू सिखाए "
धूप-छाँव का...खेल खेलकर क्यों तेरा मन ना भर पाए,,,!!!

रे काले मेंघा,,,,
आकर फिर तू, कहाँ उड़-उड़ जाए "
बता क्या है तेरा पता...तुझसे मिलने वही आए,,,,!!!