...

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कर्म
ये सूरज जो जगमगा रहा हैना।
तुम्हारे कर्मो का याद दिला रहा है।
करोड़ों सालों से इसका एक ही काम है।
कितने सारे जीवन को बसते और मरते देखा।
क्या सूरज कभी रोया?
क्या उसने अपना कर्म छोड़ दिया?
सुनो बहुत छोटा है तुम्हारा ये जीवन,
बहुत छोटी सी तुम्हारी औकात है।
जब तक हो खुशी से रह लो।
बिन माटी तुम्हारी कुछ नहीं पहचान है।
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