...

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निशब्द, दोस्ती शब्द
तेरे चरित्र की अदला - बदली क्या खेल रचा गई
कभी लोगो को तेरा तो कभी गैरो को बना गई
तेरा होना भी मुझ में ना होना बता गया ...
तेरे दोस्ती खेल की कला भी क्या खेल रचा गई
तू कहे तो निशब्द कहूं तूझे, तू कहे तो शब्द ही शब्द भरू तुझमें
तेरी ये साजिशे क्यू मुझे बस बेमतलब सी कहानियां लगी
बेखबर थी दोस्ती शब्द से तु मिला तो दोस्ती शब्द ही निशब्द लगने लगा ...
तुझसे दरख्वास्त भी बहुत है मुझे ...
हर सवाल जानने की जिज्ञासा भी बहुत है मुझे
तू क्यू हर बार दर-दर भटकता रहा मुझे ...
सवाल भी बहुत है जहन-ए-दिमाग में ...
तू क्यू हर बार रुलाता रहा मुझे
क्यू चंद पलों की बाते फिर वही दूरियां अपनाता रहा मुझसे....


-sanju mei