...

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कम्बख़त वक्त
कम्बख़त वक्त भी क्या अजीब है यारो ?
इनकी अंदाजे गुफ्तगू भी क्या अजीब है यारो ?
कोई मिला चंद पल के लिए कोई छूटा चिरकाल के लिए ...
कम्बख़त वक्त भी क्या ? बेहाल करता है मुझे
मेरे ही हाल से दरख्वास्त करता है मुझे ...
वक्त - वक्त कम्बख़त वक्त भी दिल - ए - हाल सुनाता है मेरा ...
हाल-ए -हाल भी कुछ ऐसा है ...
वक्त मेरा मुझको ना अपना ना बतलाता है ।
दिल -ए - हाल भी कुछ ऐसा है ...
कि वक्त मेरा मुझको अपना ना बतलाता है ।
कोई आता है खेल -ए - दिल से कुछ ऐसा जाता है कि टूटे तो ऐसा टूटे और बिखरे तो ऐसा बिखरे की कभी जुड़ ना सके ।
कम्बख़त वक्त कुछ चंद पल के लिए नहीं
कम्बख़त वक्त हर पल मेरा अपना बतलाता है
कोई दीदार कर ना करे मेरा ...
कम्बख़त वक्त हर वक्त -ए- दीदार करता है मेरा.....

-sanju mei 🖤