...

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मुझे कुछ कहना नहीं आया.....
मुझे कुछ कहना तो , उनको कुछ सुनना नहीं आया
अभि दिल के हाल को , जुबां पर रखना नहीं आया
लालच की ऑंखों में छुपा रखा है मोहब्बत को उसने
यह सच भी उसकी ज़ुबां से कहना नहीं आया

दिल इबादत करता रहा , शिद्दत से उसकी ऑंखों का
न दिखीं वो हया , इश्क़-ए-रूमानियत नज़र नहीं आया
लालच की ऑंखों में छुपा रखा है मोहब्बत को उसने
यह सच भी उसकी ज़ुबां से , क्यों कहना नहीं आया ?

मुझे कुछ कहना तो , उनको कुछ सुनना नहीं आया
अभि दिल के हाल को , जुबां पर रखना नहीं आया

अभि तुम्हें मुझसे , तकलीफ़ क्या है ?
ये ज़वाब उसकी जुबां पर नहीं आया
पूछता रहा हज़ारों-हज़ार दफ़ा मोहब्बत में उससे
अपने दिल की बातों को , वो जुबां पर अपने नहीं लाया

मुझे कुछ कहना तो , उनको कुछ सुनना नहीं आया
अभि दिल के हाल को , जुबां पर रखना नहीं आया
लालच की ऑंखों में छुपा रखा है मोहब्बत को उसने
यह सच भी उसकी ज़ुबां से कहना नहीं आया
© अभिषेक चतुर्वेदी अभि'
© ✍️©अभिषेक चतुर्वेदी 'अभि'