...

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दोगुला समाज
कैसा यह दोगुल समाज,
कैसी दोगुली उनकी बातें हैं,
हो जाती शर्मसार यहां सरेआम इंसानियत,
यहां सिर्फ बनती बातें हैं,
आज एक बार फिर जीत गई हैवानियत,
सर-ए-बाजार लुट गई फिर वो आबरू,
और बस खड़ा तमाशा देख रहा ए समाज तू,
नग्न वो स्त्रियां नही,
नग्न हुआ यह पूरा समाज हैं,
धूमिल हो गई संस्कृति भारत की,
गूंगा, अंधा बना बैठा यह हिंदुस्तान हैं,
जहां पूजनीय है स्त्रियां,
जहांवो देवी समान हैं,
वहां लुट जाती है उनकी इज्जत,
यहां होते रोज बलात्कार हैं,
कर देते है निर्वस्त्र उन्हें,
सड़को पर नग्न घुमाते हैं,
वही फिर यह दोगुला समाज,
स्त्रियों पर प्रश्न उठाते हैं।
स्त्रियों पर प्रश्न उठाते हैं।।
© t@nnu