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कैसे कहूं !!
#WritcoPoemPrompt93
Having to deal with a challenge within, something that is hard to address, and you are not sure where to begin. Pen down a poem for the same.
ना जानूं मैं कि मैं कैसे कहूं,
ये भी ना जानूं कि कहूं ना कहूं।
कहूं तो भला किसे कहूं,
कहे बिना भी भला कैसे रहूं।
एक अजीब सा एहसास है,
ये एहसास भी ज़रा खास है।
सुनने वाला नहीं ये इतफाक़ है,
मगर बयां करने की प्यास है।
कहना भी ना आसान है,
दिल ज़रा सा नादान है।
जाने ना ये कि कैसे कहे,
जो छिपे हुए अरमान हैं।
सोचा था कि कह दूं नयनों से,
कमबख्त नयन पढ़ना कोई जाने ना।
दिल उलझा सा है पूछो चैनों से,
कोई माने चाहे माने ना।
फिर सोचा कह दूं होठों से,
मगर लब चुप ही रहें तो अच्छा है।
ना जाने कोई समझेगा या नहीं,
हर वो जज़्बात जो सच्चा है।
ना मिला जब कोई तरीका तो,
एक कलम उठाई मैंने फिर।
लिख दिए जज़्बात लब्ज़ों में,
एक रचना बनाई मैंने फिर।
सीखा मैने ना ढूंढ ए दिल,
कोई सुनने वाला, कोई समझने वाला।
बंद करके जज़्बात रूह में,
लगा इनको मुस्कुराहटों का ताला।