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इश्क -ए-बनारस
बनारस की घाट पर कुछ उम्मीद से खड़ा हू मै
की किसी पहर ठंडे पड़े इन हाथों को तुम थाम लोगी
और ये सालों का इंतजार कुछ यूं ही ख़त्म हो जाएगा जैसे आज की सुहानी सुबह
और ढल जायेगा इंतजार का ये पल इस शाम की तरह
वो पहर जब एक लंबे इंतजार के बाद तुम मेरे सामने होगी इस अस्सी घाट पर
शाम की गंगा आरती का दिलकश नज़ारा
भोलेनाथ की भक्ति , शंखनाद
आरती का स्वर , प्रज्वलित अग्नि और सुगंधित धूप
और इन सब के साथ मेरे हाथो में तुम्हारे मेंहदी वाले हाथ
सच कहा था तुमने बनारस बहुत खूबसूरत है
क्योंकि यहां आकर मैं तुम्हें इतना महसूस कर पा रहा हूं जितना अपनी सासो को , अपनी धड़कनों को
तुम यहां नही हो फिर भी एक एहसास है तुम्हारे होने का , तुम्हारे साथ बिताए उन पलो का
तुम ही कहो क्या मुझे इजाज़त है
मैं तुम्हारी गंगा सी पाक मोहब्बत का बनारस बन जाना चाहता हूं।

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© shalu Gupta