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सत्य पराजित भी होता है
सत्य आजकल कहीं दिखता नहीं। वह चुपचाप किसी कोने में, अंधेरे में सिमटा पड़ा रहता है। कभी पुलिस की फाइलों में तो कभी न्यायालय के दस्तावेज़ों में, धूल खाता हुआ। वक्त बीतने के साथ, धूल उसे ढक लेती है और एक दिन वह धूल में ही खो जाता है। लेकिन बाहर नहीं आता, क्योंकि सत्य को डर है—शर्मसार होने का।

सत्य अक्सर उन जगहों पर छुप जाता है जहां झूठ का बोलबाला न हो, जहां इंसान का...