...

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।। अभिशप्त मन ।।
#लालसा_की_प्रतिध्वनि
अभिशप्त मन ?
हां, अभिशप्त ही तो है मन।
तेरी लालसा सदा लगी रहेगी,
तृष्णा कभी न मिटेगी,
तू प्यासा ही रहेगा सदा।
कौन नहीं इस मनोविकार से ग्रसित ?
राजा को साम्राज्य बढ़ाने की लालसा,
धनी को और धन की लालसा,
ज्ञानी को महा ज्ञानी बनने की लालसा।
पुत्री हुई तो पुत्र की लालसा,
क्या चिरयौवन प्राप्य है ?
लेकिन चिरयौवन की लालसा।
मृत्यु शय्या पर भी ये लालसा,
पीछा नहीं छोड़ती।
ये लालसा सर्वनाश करा देती है।
कोई संकोच नहीं,
उल्टे-सीधे काम करने में,
जेल की काल कोठरी तक
पहुंचा देती है लालसा।
जीभ के रसास्वादन की लालसा,
तरसा देती है भोजन को।
अभिशप्त है ये मन।
"अजब सी कशमकश है जिन्दगी की,
पांव लटके हैं मगर है तृष्णगी भी"
नन्द गोपाल अग्निहोत्री
© Nand Gopal Agnihotri