...

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आख़िर वक्त और होता क्या है?
तेरा वक्त अब नहीं मांगती मैं,
कि मेरा वक्त तो तू खुद है।
ज़िंदगी जीना सीखी मैंने तेरे आने के बाद,
मरती तो नहीं, मारी हुई सी होती हूँ तेरे जाने के बाद।
आख़िर वक्त और होता क्या है?
तेरा साथ अब मुझे हर वक्त चाह कर भी नहीं चाहिए,
क्यूंकि ज़रूरी मोहब्बत से ज़्यादा और भी काम हैं दुनिया के,
आख़िर वक्त और होता क्या है?
मगर तेरे आने की ज़िद्द दिल अब भी नहीं छोड़ रहा है,
रात दिन भीड़ हो के तन्हाई तेरी राह देख रहा है,
आख़िर वक्त और होता क्या है?
लेकिन जी रही हूँ खुद को समेट कर,
चाक दिल को सी सी कर,
कि शायद मेरे रब्ब को मेरा जीने का तरीका पसंद आ जाए,
कि शायद वो मुझे इस जनम उस से मिलवा दे,
इसी उधेड़ बुन में दिन रात गुज़र रहे हैं,
आख़िर वक्त और होता क्या है?
Aapki Sehzadi
#Love&love #Shayari #MissingYou
© Haniya kaur