एक शाम....
एक शाम जो तुम आओ
मुझसे मिलने,
चूम लूँगा तुम्हारी पलकें
मिला के रंग तुम्हारे
गालों का उस शाम को
और रंगीन कर दूँगा,
छू लूँगा तुम्हारे होंठ
उँगलियों के पोरों से
दूंगा कुछ निशानियाँ
उस मुलाक़ात की
इश्क़ मे कुछ
शरारतें और बेइमानीय भी
करूँगा,
पर शर्त रहेगा कि
छू कर भी मैं तुम्हे
अनछुआ भेज दूंगा..! !
© दीपक
मुझसे मिलने,
चूम लूँगा तुम्हारी पलकें
मिला के रंग तुम्हारे
गालों का उस शाम को
और रंगीन कर दूँगा,
छू लूँगा तुम्हारे होंठ
उँगलियों के पोरों से
दूंगा कुछ निशानियाँ
उस मुलाक़ात की
इश्क़ मे कुछ
शरारतें और बेइमानीय भी
करूँगा,
पर शर्त रहेगा कि
छू कर भी मैं तुम्हे
अनछुआ भेज दूंगा..! !
© दीपक
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