...

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!...तुम नज़र ना आई...!
जागा हूं मैं रात भर, हर पल तेरी याद में
चंदा, तारे, सूरज आए, तुम सनम ना आई

बातें मेरे लब पर थी, ज़िक्र में चर्चे थे तेरे
हर तरफ थी तुम ही तुम, और तुम नजर ना आई

तड़पा रोया रात भर, एक जुगनू चमका रात भर
एक आस लगा कर बैठे थे, और आस नजर ना आई

आंखे बंद कर के सोचा, शायद तुम तो आओंगी
सपने मे जग सारा आया, तुम सनम ना आई

दिल टूटा एक आह भरी, औरों जैसा तू निकला
मजनू धोखा खा बैठा, और लैला ही ना आई

आग लगी है गुलशन मे, चुप बैठा है परवाना
जिस्म ये झुलसा सारी रात, पर याद तुम्हें ना आई

—12114