...

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एक लफ्ज़
उसे एक लफ्ज़ में कैसे लिख दूं
जिसके लिए हज़ार बार मरा हूं मैं

तुम क्या आंकोगे मेरी कीमत
तेरे लिए पूरे बाज़ार से लड़ा हूं मैं

मेरे गिरते पत्तों से मेरी जात न आंक
ज़वाल ए इश्क में भी शजर हरा हूं मैं

ना घबरा जिंदगी के अनजाने मोड़ से
तेरे पीछे आज भी रासिख खड़ा हूं मैं

हो कोई और खंजर, तो वो भी मार दे
तेरी सोच से जायदा, अना में बड़ा हूं मैं



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