...

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स्त्री का जीवन..
सजा के लाल चुनर देवी बना दिया
उड़ा वही चुनर दरिंदगी दिखा दिया
जन्म देने से पहले आंखें मूंद दी
जन्म देकर भी जिंदगी बेड़ियों में जकड़ दी
समाज क्या कहेगा कहकर आगे नहीं बढ़ने दिया
क्रूरता के जाल में उसका जीवन खत्म कर दिया..

कहकर,उसका खून अपवित्र है
उसको मंदिर,मस्जिद नहीं जाने दिया
नौ दुर्गा का रूप मान उसको बाद में पूज लिया
जिस खून को तू अपवित्र मानता है
उस खून की वजह से तू इस दुनिया में जन्मा है..

उसके कपड़ों को देख उस पर लांछन लगाया है
दुनिया के सामने उसे हर मोड़ पर नीचा दिखाया है
गलत ना होते हुए भी उसे गलत करार दिया
हैवानियत और दरिंदगी ने उसका दम निकाल दिया
न्याय की देवी झूठी इज्जत के नीचे दब गई
जलती मोमबत्तियां सुबह का सूरज भी ना देख पाई..

समाज से,परिवार से,और खुद से लड़ रही है वह
जमाने की सोच तले दब रही है वह
बस आखिर में कह रही है वह
कभी तो मुझे इज्जत दो||

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