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#माँ
माँ की शफ़क़त और सीख का ही ये असर है
हौसला टूटा नहीं मेरा, मुसीबतें भी बेअसर हैं
ज़िंदगी किसी की चलती नहीं एक लकीर पर
एक ही रास्ते पर कितनी शब कितनी सहर हैं
हम इन्सान बदलते हैं लोगों के आने जाने से
समंदर कब रोता है, जब आती जाती लहर है
तुम चुप ही रहना, मत कहो क्या चल रहा है
हालात को समझने में अभी कुछ तो कसर है
कुछ उलझी सी, थोड़ी सुलझी सी ऐसी है ये
ज़िंदगी की दास्ताँ दुनिया की पेश- ए -नज़र है
© संवेदना
#पुरानी_तहरीरें
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