...

4 views

एक कविता
मन मस्त हुआ होश नहीं
फिर कर दिया तुमने घायल

मन थोड़ा सा इंतजार हुआ
फिर थोड़ा सा अधूरा इतिंहा

मन में दर्द हुआ जो था पूरा
फिर थोड़ा सा अधूरापन

मन में कोई गांव बना
फिर थोड़ा सा हुएं माटी के करीब

मन तो बावरा कोई शहर से
फिर थोड़ा सा पी लिया तेरे खातिर

मन तो रेत चुका था लेकिन
फिर कोई कंकड़ पत्थर मार
थोड़ा सा इल्ज़ाम लगा देते हैं
वक्त बेवक्त !