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एक कविता
मन मस्त हुआ होश नहीं
फिर कर दिया तुमने घायल
मन थोड़ा सा इंतजार हुआ
फिर थोड़ा सा अधूरा इतिंहा
मन में दर्द हुआ जो था पूरा
फिर थोड़ा सा अधूरापन
मन में कोई गांव बना
फिर थोड़ा सा हुएं माटी के करीब
मन तो बावरा कोई शहर से
फिर थोड़ा सा पी लिया तेरे खातिर
मन तो रेत चुका था लेकिन
फिर कोई कंकड़ पत्थर मार
थोड़ा सा इल्ज़ाम लगा देते हैं
वक्त बेवक्त !
फिर कर दिया तुमने घायल
मन थोड़ा सा इंतजार हुआ
फिर थोड़ा सा अधूरा इतिंहा
मन में दर्द हुआ जो था पूरा
फिर थोड़ा सा अधूरापन
मन में कोई गांव बना
फिर थोड़ा सा हुएं माटी के करीब
मन तो बावरा कोई शहर से
फिर थोड़ा सा पी लिया तेरे खातिर
मन तो रेत चुका था लेकिन
फिर कोई कंकड़ पत्थर मार
थोड़ा सा इल्ज़ाम लगा देते हैं
वक्त बेवक्त !
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