...

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प्रेरणा
मन के भीतर सब तितर-बितर एकत्रित कर
प्रेरणा जगा धर धीर विजय की यात्रा कर।।
क्या हीन बना देगी तृष्णा! का कर विचार
टुकड़ों में मत बांट, तेरा एकाधिकार
जो अपने से दिखतें है उनसे मोह न कर
जिनसे तू घायल है उनसे विच्छोह न कर
दुख-सुख केवल अवरोध! ग्रसित मत हो
पक्ष हीन बन! परक्रोध! लसित मत हो
सारी पीड़ा, अनुभूति, प्राप्त कर, पर
प्रेरणा जगा धर धीर विजय की यात्रा कर।।
त्वरित कर्म से स्मृती को विचलन से मुक्त किए
शीतलता पर, कर को आयुध से युक्त किए
स्वासों में बहती ज्वाल, नेत्र में अग्नि लिए
अग्नी की शैय्या, अनल भोज, इच्छग्नि पिए
पर से, स्वर से, सर से, ना भीति करो
सबको समता में देखो सबसे प्रीति करो
जो भी होगा अच्छा होगा क्या असाध्य क्या दुष्कर
प्रेरणा जगा धर धीर विजय की यात्रा कर।।
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