...

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अतीत के समुंदर में...
अतीत के समुंदर में कुछ अनचाही यादों की लहरें फ़िर उमड़ने लगी है
ख्वाहिशें भी सीमाओं को पार करके किनारों से जद्दोजहद करने लगी है

मुहब्बत में खुद को कुर्बान कर देने का रिवाज हमें गँवारा नहीं था कभी
शायद मेरी ऐसी ही चाहतें उनके और मेरे दरमियाँ सरहद बनने लगी है

एक वक़्त ऐसा था मेरी मौजूदगी भी खटकती थी कुछ लोगों की आँखों में
आजकल उनकी बातें की मिठास इस फ़ीकी जिंदगी में शहद लगने लगी है
© आँचल त्रिपाठी