...

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चेहरे पर चेहरा
चेहरे पर चेहरा करता घाव गहरा।
अपना हो या हो और कोई पराया‌।।
दिल टूटता है जब किसी का ,
रोता है फिर खुदा भी उसका।।
एहसास ए ग़म औरों से जुदा नहीं होता"
अपनों का दिया धोखा बर्दाश्त नहीं होता..!!
क्या मांगा था हमने आप से,
और क्या दिया आपने मुझे ..??
ना नौकर ना चाकर ना बंगला ना गाड़ी"
एक दोस्ती भी हमारी जमाने को रास नहीं आई।
वे मुरव्वत है जमाने की ये सारी रिश्तेदारी"
दिल्लगी का नज़राना हमें खूब दिया जमाना।।
शीशा सा नाजुक दिल अपना
सह ना सका बेवफाई का नज़राना।।
अश्कों में बह गया फिर अपना फसाना,
अब ना गिला किसी से ना ही कोई शिकवा ही रहा..!!
जो मर्जी तुम्हारी दे दो हमें सज़ा,तेरी नज़र में शायद "
मेरी सादगी का बेसक यही सिला रहा।।
अफसोस तो बस इतना रहा कि ..
तुमने भी मुझे जमाने की तरह ही लिया।।
किरण