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नगण्यता
आज जीवन , है मरण कल
शोक फिर किस बात का
चल रहा अंजान डगर पर
भय न कर किसी रात का
शून्य से इस अंतरिक्ष मे
अस्तित्व हीन है जग बड़ा
है नगण्य सी हस्ती सबकी
फिर भी खोने का गिला
प्रेम और सौहार्द का
हो जैसे अब अकाल सा
चल रहे है भीड़ मे
गुमनाम है मंजिल यहां।
© Shreya
शोक फिर किस बात का
चल रहा अंजान डगर पर
भय न कर किसी रात का
शून्य से इस अंतरिक्ष मे
अस्तित्व हीन है जग बड़ा
है नगण्य सी हस्ती सबकी
फिर भी खोने का गिला
प्रेम और सौहार्द का
हो जैसे अब अकाल सा
चल रहे है भीड़ मे
गुमनाम है मंजिल यहां।
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