दरख़्त और बचपन!!
हम तीनों एक साथ खड़े थे ।मेरे घर के सामने दो घने पेड़ थे ।।
वह दोनों वहाँ खड़े मुझे देखते थे ।
खेलते ,पढ़ते और मेरे साथ आसमान देखते थे ।।
मैं तभी देख पाता था ।
जब कुछ नहीं कर रहा होता था ।।
रात एक पैर पर खड़े रहते थे।
दिन की आवाज़ाही में झपकी ले लेते थे ।।
डामर की सड़क ने , दोनों के घेरे सीमित किए थे ।
दोनों उलझे हाथ उनके कुल्हाड़ी से काटे थे ।।
अचानक एक दिन...