...

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परिवर्तन
परिवर्तन में सौंदर्य छिपा
परिवर्तन में श्रृंगार है
हमेशा एक सा नहीं रहता
यह मानव का जीवन काल है।
परिवर्तित स्थावर, भू ,जंगम
परिवर्तित सकल समाज है
परिवर्तित हैं ऋतुएं सारी
परिवर्तित दिन और रात है।
परिवर्तित मानव का शरीर
परिवर्तित ये व्यवहार है
तभी तो सृष्टि लगती मनोहर
गाती सुंदर राग है।