...

25 views

तू क्यों सिर जुकाए चलता हे
तू क्यों सिर जुकाए चलता हे,
तू एक रात वाला नायक नहीं,
नाही तू चंद पलों का वक्ता हे,
आसमान विद्रोह पर उतार आया हे
और
गिद्ध भी नोच खाने को मंडरा रहे हे
तो क्या;
जिन तूफानों में उजड़ जाते हे बागान
उनमें भी तूने उम्मीद क दीप जलाए हे,
तू कर्म कर तेरा भी सूर्योदय आयेगा,
तू सिर उठाए चल एक.. एक.. कर हर सितारा तेरे पग चाप सुनाए गा,
तू क्यों सिर जुकाए चलता हे
तेरा भी सूर्योदय आयेगा।

© Poshiv