...

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ये डूबता सूरज कल फिर उदय होगा..
ये डूबता सूरज कल फिर उदय होगा,
ये ही मेरी निराशाओं को आशाओं में
बदलेगा.. विश्वास है मुझे...

मैं हार नहीं मान सकती
मैं स्त्री हूं... धरा सी धृढ़ हूं..
मैं धीरज सी परिपूर्ण हूं,
है दिया ईश ने सृष्टि सृजन
का अधिकार मुझे.....

ना तू यहां बैठ देख मुझे,
जश्न ना मना...
सृजन ही नहीं -
मैं देवी संहारो की भी...
© दी कु पा