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बैचेन मन
मन हर पल बैचेन रहें यह कैसी कशमकश है जीवन की,
एक सदी सी उधेड़बुन के बाद भी क्यों उलझन ना सुलझें मन की,
कभी यह चाहें यौवन की मस्ती कभी यह चाहत करें धन की,
यह सदियों से भूखा प्यासा पर इसको भूख प्यास नहीं जल अन्न की,
मन के द्वारा लाखों हसरतें पालने की आदत व्याधि बन जाएं तन की,
इस मन का मारा मैं अकेला ही नहीं यह समस्या तो है सब जन की।
© DEV-HINDUSTANI
एक सदी सी उधेड़बुन के बाद भी क्यों उलझन ना सुलझें मन की,
कभी यह चाहें यौवन की मस्ती कभी यह चाहत करें धन की,
यह सदियों से भूखा प्यासा पर इसको भूख प्यास नहीं जल अन्न की,
मन के द्वारा लाखों हसरतें पालने की आदत व्याधि बन जाएं तन की,
इस मन का मारा मैं अकेला ही नहीं यह समस्या तो है सब जन की।
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