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दोगले लोग
कई बार हम लोग अपने आसपास अपने करीब रिश्तो से बहुत परेशान रहते हैं और यह हाल सभी का रहता है बहुत कम लोग हैं जिनके जिंदगी में सुकून और परिवार दोनों एक साथ रहता है ।
यह कविता इस स्थिति को बता रही है , जब आप ऐसे रिश्ते में बांधे हो न तोड़ सकते हो और न ही सह सकते हो इन दोनों ही स्थितियों में उस रिश्ते के साथ रहना पड़े तब की स्थिति का
हाल है ये कविता —
उमर बीती जा रही है दोगले लोगों को बीच,
क्यों नहीं समझ पाई मैं इनकी तरकीब।
संवेदनाओं का लेकर बहाना,
मुझे हमेशा दिया ताना।
अपना समझ कर हर सलाह को मैंने गले लगाया,
इसी वजह से मैं ने खुद को भुलाया।
हर वक्त होती रहती हूं संवेदनाओं की शिकार,
तब भी आंखें मुद खड़ी हूं इसी पार।
आत्मा रोती है मेरी हर बार,
मुझे इनकी दोहरी बातें हैं इनकार।
यह हैं दोगलेपन का एक जाल,
इसे मुझे करना है हलाल।
—अंकिता द्विवेदी त्रिपाठी —
© Ankita
यह कविता इस स्थिति को बता रही है , जब आप ऐसे रिश्ते में बांधे हो न तोड़ सकते हो और न ही सह सकते हो इन दोनों ही स्थितियों में उस रिश्ते के साथ रहना पड़े तब की स्थिति का
हाल है ये कविता —
उमर बीती जा रही है दोगले लोगों को बीच,
क्यों नहीं समझ पाई मैं इनकी तरकीब।
संवेदनाओं का लेकर बहाना,
मुझे हमेशा दिया ताना।
अपना समझ कर हर सलाह को मैंने गले लगाया,
इसी वजह से मैं ने खुद को भुलाया।
हर वक्त होती रहती हूं संवेदनाओं की शिकार,
तब भी आंखें मुद खड़ी हूं इसी पार।
आत्मा रोती है मेरी हर बार,
मुझे इनकी दोहरी बातें हैं इनकार।
यह हैं दोगलेपन का एक जाल,
इसे मुझे करना है हलाल।
—अंकिता द्विवेदी त्रिपाठी —
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