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मां
*_मेरी दुनिया है मां तेरे आंचल में_*
बचपन में मां कहीं चली जाए दो पल तो रो रो कर बुरा हाल किया करते थे मां ही चाहिए होती थी हर काम के लिए कोई काम मां के बगैर नहीं करते थे।
मां का पल्लू थामे हर जगह जाते थे खाना जब भी हो उसी के हाथ से खाते थे पिताजी तक बात मां के हाथों पहुंचाते थे बात मान जाने पर मां को गले लगाते थे।
आज मां एक कोने में बैठी रहती है सुबह से शाम तक इंतजार करती है क्यों नहीं करता कोई बात उससे ? क्यों नही लगाता आकर गले उसे?
वो हर बात याद करती है तुम्हारे बचपन की वो कड़ियां पिरोती है तुम्हारे लड़कपन की वो तुम में सूरत देखती है तुम्हारे पिता की करना चाहती है तुमसे बातें अपने मन की।
लगा लिया करो बिना बात उसे गले कभी तरक्की का तुम्हें आशीर्वाद देगी तरसोगे नही किसी भी चीज़ को कभी ईश्वर की कृपा तुम पर बनी रहेगी।
बचपन में मां कहीं चली जाए दो पल तो रो रो कर बुरा हाल किया करते थे मां ही चाहिए होती थी हर काम के लिए कोई काम मां के बगैर नहीं करते थे।
मां का पल्लू थामे हर जगह जाते थे खाना जब भी हो उसी के हाथ से खाते थे पिताजी तक बात मां के हाथों पहुंचाते थे बात मान जाने पर मां को गले लगाते थे।
आज मां एक कोने में बैठी रहती है सुबह से शाम तक इंतजार करती है क्यों नहीं करता कोई बात उससे ? क्यों नही लगाता आकर गले उसे?
वो हर बात याद करती है तुम्हारे बचपन की वो कड़ियां पिरोती है तुम्हारे लड़कपन की वो तुम में सूरत देखती है तुम्हारे पिता की करना चाहती है तुमसे बातें अपने मन की।
लगा लिया करो बिना बात उसे गले कभी तरक्की का तुम्हें आशीर्वाद देगी तरसोगे नही किसी भी चीज़ को कभी ईश्वर की कृपा तुम पर बनी रहेगी।
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