स्त्री की सादगी
कभी साड़ी से धर्म टूटता
कभी स्कर्ट से लूटती सभ्यता
नारी के कपड़ों में लिपटी है
हाय! मेरे समाज की संकीर्णता
कहीं केसरिया कोसा जाता
कहीं हरे का होता अपमान
रंगो में देखो बँट गयी है
हाय! मेरे देशवासियों की पहचान
कभी शुकर से...
कभी स्कर्ट से लूटती सभ्यता
नारी के कपड़ों में लिपटी है
हाय! मेरे समाज की संकीर्णता
कहीं केसरिया कोसा जाता
कहीं हरे का होता अपमान
रंगो में देखो बँट गयी है
हाय! मेरे देशवासियों की पहचान
कभी शुकर से...