स्त्री की सादगी
कभी साड़ी से धर्म टूटता
कभी स्कर्ट से लूटती सभ्यता
नारी के कपड़ों में लिपटी है
हाय! मेरे समाज की संकीर्णता
कहीं केसरिया कोसा जाता
कहीं हरे का होता अपमान
रंगो में देखो बँट गयी है
हाय! मेरे देशवासियों की पहचान
कभी शुकर से अपमानित होती क़ुरान
कभी गौरक्षा हेतु क़त्ल होते इंसान
मासूम पशुओं के माथे मढ़ दिये
हाय! मेरे क़ातिलों ने इलजाम
कहीं रात भर जगाये जागरण
कहीं सुबह की नींद उड़ाये अजान
दिन रात शोर से भर दिये
हाय! कितने बहरे हुये मेरे भगवान
अल्लाह ईश्वर या भगवान
सुनो ! जिस नाम से भी तुम सुनते हो
तुम्हारी रक्षा करते करते
हाय! राक्षस बन गया यहाँ इंसान
अनुज चन्द्रा ✍️✍️
कभी स्कर्ट से लूटती सभ्यता
नारी के कपड़ों में लिपटी है
हाय! मेरे समाज की संकीर्णता
कहीं केसरिया कोसा जाता
कहीं हरे का होता अपमान
रंगो में देखो बँट गयी है
हाय! मेरे देशवासियों की पहचान
कभी शुकर से अपमानित होती क़ुरान
कभी गौरक्षा हेतु क़त्ल होते इंसान
मासूम पशुओं के माथे मढ़ दिये
हाय! मेरे क़ातिलों ने इलजाम
कहीं रात भर जगाये जागरण
कहीं सुबह की नींद उड़ाये अजान
दिन रात शोर से भर दिये
हाय! कितने बहरे हुये मेरे भगवान
अल्लाह ईश्वर या भगवान
सुनो ! जिस नाम से भी तुम सुनते हो
तुम्हारी रक्षा करते करते
हाय! राक्षस बन गया यहाँ इंसान
अनुज चन्द्रा ✍️✍️