...

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अब मैं लौटूंगी नहीं ......🥲
मैं एक जागी हुई स्त्री हूं।
मैंने अपनी राह देख ली है।
मैं अब लौटूंगी नहीं......🥲

मैंने ज्ञान के बंद दरवाजे खोल दिए हैं।🚪
सोने के गहने तोड़ कर फेंक दिए हैं।

भाइयों ! मैं अब वह नहीं हूं जो पहले थी।
मैं एक जागी हुई स्त्री हूं।
मैंने अपनी राह देख ली है।
अब मैं लौटूंगी नहीं।
मैने पापा और मम्मी को बहुत सताया अब मैं और न सताऊंगी ।
अब मैं लौटूंगी नहीं ......🥲
छोड़ कर सब खुशियों का दामन ...
अब मैं लौटूंगी नहीं ......🥲


एक स्त्री के जीवन में कितना संघर्ष होता है इन लाइनों के द्वारा प्रस्तुत करने की कोशिश की है । अगर अच्छी लगे तो दिल से धन्यवाद।

एक स्त्री जब अपना घर छोड़कर किसी दूसरे के घर में जाती है तो उसको क्या-क्या छोड़ना पड़ता है इन लाइनों में प्रस्तुत किया है ।
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