...

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"झुठ नही मज़बूरी हैं"
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
झूठ नहीं मजबूरी है,

खेत मेरा है हवन शाला,
अपने शरीर करता मैं हवन;
लेकिन कहा होती गिनती मेरी हैं,
झुठ नही मज़बूरी हैं,

स्वभाव से मैं हूँ साधु,
पीड़ित अपने व्यथा से हूँ;
फाँसी किस्मत में मेरी है,
झूठ नही मज़बूरी,

धरा के सीने को चीरकर,
नए अंकुर मैं उगाता;
यातनाएं सहती ज़िन्दगी मेरी है,
झुठ नही मजबूरी है,

फटे है वस्त्र जले है पांव,
हूँ मैं एक अदना सा किसान;
खड़ी फसल जल रही,
सूद से वज़ूद दब रही मेरी हैं,
झुठ नही मज़बूरी हैं,

कर्मयोगी की तरह मेहनत करता,
सुख की कभी लालसा नही रखता;
दीनता का भाव नही मुझमें,
अहर्निश कर्म करू यही कामना मेरी हैं,
झूठ नही मज़बूरी हैं,

पूर्ण त्याग का हूँ अभिलाषी,
सेवा करू मैं निरंतर मनुष्य मात्र की;
उपेक्षावों का आलोक होता हूँ शिकार,
दुःख जीवन साथी मेरी हैं,
झुठ नही मज़बूरी हैं।

मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® आलोक पाांडेय
गरोठ, मंंदसौर, (मध्यप्रदेश)

© Alok1109Archana