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आधुनिक जमाने के इश़्क का इंतकाम....
एकतरफे प्रेम में मिली हार को वो सहन ना कर पाया,
इसलिए उसने आत्महत्या करने का विचार बनाया।

फिर अचानक से ही उसके जेहन में एक ख्याल आया,
अब हम भी उसे बहुत रूलायेंगे जिसने हमें है रुलाया।

कर दी एक ही झटके में जिसने मेरी पूरी जिंदगी बर्बाद ,
खुशियों से उसकी भी जिंदगी कभी होने ना दूंगा अबाद।

चेहरे पर नकाब बांध , लेकर महज चंद रुपये जाकर जेनरल स्टोर से तेजाब का एक बोतल खरीद लाया,
फिर कई दिन - रात अपना पूरा ध्यान अपने महबूबा के दिनचर्या के ऊपर ही लगाया।

सहसा एक दिन अचानक अपना बाईक अपनी महबूबा के पीछे सरपट दौड़ाया ,
और मौका मिलते ही अपने महबूबा के चेहरे पर तेजाब फेंक भागता हुआ वो अपना घर वापस आया।

बिगाड़कर एक सुंदर से चेहरे को उसने अपने धधकते कलेजे को बहुत ही ठंड़क पहुँचाया
घर आकर उसने अपनी जीत का जश्न जमकर पूरी रात जाग दोस्तों संग मनाया,

वो लड़की दर्द के मारे कराहती रही, तड़पती रही,मदद के लिए लोगों को पुकारती रही,
तमाशबीन भीड़ उस लड़की के दर्द से पूरी तरह बेखबर बस उसे एकटक निहारती रही।

आज फिर हो गयी थी इस मतलबी जमाने के आगे इंसानियत शर्मसार,
आंख और कान होते हुए भी अंधा, और बहरा बना रहा ये संसार।

— Arti Kumari Athghara (Moon)✍✍

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