प्रेम
प्रेम अगर सिर्फ आध्यात्मिक होता
तो खुदा
सबको एक जैसा ही बनाता
मर्द और औरत अलग-अलग ना होते
वह एक दूसरे के पूरक ना होते
एक दूसरे को एक दूसरे की जरूरत ना होती आगे वंश बढ़ाने की बेल
ईश्वर उनके हाथों में ना देता।।
प्रेम की पराकाष्ठा शरीर पर आके न रुकती
संभोग का विचार मन में ना आता
जब ईश्वर ने ही
आध्यात्मिक और शारीरिक प्रेम
को अलग-अलग ना किया
तो मनुष्य क्यों हर बार
आध्यात्मिक प्रेम को ऊंचा दर्जा देता
और शारीरिक प्रेम को तुच्छ समझता
ईश्वर को प्राप्त करना हो
तो हर प्रेम में सामंजस्य चाहिए
चाहे वो आध्यात्मिक हो, शारीरिक हो, बौद्धिक हो या मानसिक हो
यह सारे प्रेम का समागम ही ईश्वर है।।।।।।।
23Rd Jun 2018
© Rohini Sharma
तो खुदा
सबको एक जैसा ही बनाता
मर्द और औरत अलग-अलग ना होते
वह एक दूसरे के पूरक ना होते
एक दूसरे को एक दूसरे की जरूरत ना होती आगे वंश बढ़ाने की बेल
ईश्वर उनके हाथों में ना देता।।
प्रेम की पराकाष्ठा शरीर पर आके न रुकती
संभोग का विचार मन में ना आता
जब ईश्वर ने ही
आध्यात्मिक और शारीरिक प्रेम
को अलग-अलग ना किया
तो मनुष्य क्यों हर बार
आध्यात्मिक प्रेम को ऊंचा दर्जा देता
और शारीरिक प्रेम को तुच्छ समझता
ईश्वर को प्राप्त करना हो
तो हर प्रेम में सामंजस्य चाहिए
चाहे वो आध्यात्मिक हो, शारीरिक हो, बौद्धिक हो या मानसिक हो
यह सारे प्रेम का समागम ही ईश्वर है।।।।।।।
23Rd Jun 2018
© Rohini Sharma
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