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द्रोपति
यज्ञकुंड से जन्म लि
वो यज्ञ सैनी कहलाई
पांडवों की वह प्यारी थी
स्वाभिमानी थी द्रोपति ।

भरी सभा में जब चीर हरण किया
दुशासन ने, तभी खामोश थे
सभी महाभारत के महारथी

अन्याय पर जब सब चुप थे
महाभारत तो होना ही था,
कान्हा तो ना आते रण मैं
जब सब न्याय के साथ होता

द्रोपदी का चीर हरण करना
दुशासन के लिए श्राप था।
महाभारत जब भी सुनाई जाएगी
उसमें द्रोपति की जिद्द भी बताई जाएगी।

जो खुद के साथ हुए अन्याय का बदला
लेने के लिए महाभारत करवाई थी।
वह द्रोपति थी जो खून से अपने केसुआ को धोई थी।
खुद के साथ हुई अपमान

का बदला कौरवों का संघार कर के मानी थी।
वह द्रोपत की द्रोपति थी
जो खुद के साथ हुई अपमान
का बदला लेने के लिए
अपनों को भी ना छोड़ी थी।
© sttd1