...

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सावन
घनन घनन शोर मचाते
आये काले मेघा
कर वर्षा धरती पर
जीवन को हर्षाते
हर्षाया तन मन
सबके
मोरों की पिहूं पिहूं से
सब दिशाएं लहराईं
पत्तों से गिरती टप टप बूंदें
धरती की प्यास बुझाये
हुई धरती जलमग्न
बच्चों ने भी खूब
कागज़ की कश्ती चलाई
इन्द्र धनुष का आकार लिया मेघों ने भी
कुछ अलसाया सा
सूरज निकला
ली अंगड़ाई दिशाओं ने
निशा को भर बांहों में
छा रही पर्वत पे
घटायें घनघोर
खो से गए सब
देख संगम झरनों संग
‌ भीगते चनारों के पत्ते
‌ देखो कैसे खेल रचाते
गुनगुन करती बारिश की बूंदें
‌ हवा को महकाती जाये
‌ घनन घनन शोर मचाते
आये काले मेघा
(दिलकश मौसम
रिमझिम बारिश
छाई घटा घनघोर
भीगा तन मन
आई ऋतु
वस्ल_ए_यार की)

स्वरचित
श्वेता अग्रवाल,, जयपुर