...

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वो चाँद....
मुझे अपनी औकात मालूम न थी साहब...
मुझे तो बस वो चाँद प्यारा था......
उन्हीं का दीदार करते थे हम ........
उन्हीं पर मरते थे हम ........
वक़्त कुछ यूँ गुजरने लगा.......
ज़मीं पर मुझे...