प्रेम यज्ञ .....
हवनकुंड की ये ,
प्रज्वलित अग्नि ....
साक्षी होगी ... बहते अश्रु की ,
प्रेम के तप सें ...
परिचय होगा ... निस्वार्थ मंत्र का !
प्रेम सुधा के .. रस का प्याला होना है ...
तुम्हारे हर स्वाहा पर ,
खुद की पूर्ण आहूति देना है ....
तन-मन आत्मा से ,
तुम्हें समर्पित हूँ ...
सिंदूर .. के तुम ...
हर क्षण साक्षी रहना !
स्वर में सम्मिलित रखना सदा ,
आशावृक्ष...